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शिकायतों की कश्ती


शीर्षक - शिकायतों की कश्ती


अक्सर हमें ये शिकायत होती है

किसी ने हमें समझा ही नहीं
पूछती हूँ मैं खुद से ही
क्या हमने खुद को पहचाना है ?

अक्सर हमें ये शिकायत होती है
गर प्यार किया तो जताया क्यों नहीं
पूछती हूँ मैं खुद से ही
क्या जितना आँखों मे दिखा वो काफी नहीं?

अक्सर हमें ये शिकायत होती है
जो तूने सपने दिए हज़ार
लेकिन  उन सपनोँ की ताबीर न दी
पूछती हूँ मैं फिर खुद से ही
क्या सपनों का पीछा करते अम्बर को छुआ हमने ?

अक्सर हमें ये शिकायत होती है
वक्त बड़ा बेरहम है, बिना साथ लिए निकल जाता है
पूछती हूँ मैं तब खुद से भी
क्या वक्त का दामन थाम हमने कदम बढ़ाया था ?

अक्सर हमे ये शिकायत होती है
मैंने तो हर रिश्तों को दी ईमानदारी
बदले में मिला धोखा ही
पूछती हूँ मैं तब खुद से
क्या विश्वास की नज़रों से कभी हमने परखा है ?

किसको, किससे शिकायत नहीं
हर इंसान शिकायतों की कश्ती में सवार है
बस डूबना ही है, तैरने का कहाँ सवाल है

हो रात अँधेरी तो शिकायत चाँदनी रात से
चढ़ते सूरज की तल्खी हो तो डूबते सूरज से
प्रकृति करे शिकायत इंसानों से
और इंसानों को है शिकायत भगवान से
जो अतीत की सोचूँ तो बर्तमान रूठ जाता है
जो बर्तमान को बाँचू तो भविष्य ऑंखे दिखाता है

शिकायतों की गठरी बड़ी भारी
कन्धे झुक जाते, खत्म होती नहीं स्याही
बस खुद से पूछती हूँ एक सवाल
छोड़ शिकायतों के पुलिंदे
कब सीखूंगी ढूँढना समाधान
                     ढूंढना समाधान!!!!

मधुलिका सिन्हा

09.12.2021
ये मेरी मौलिक और अप्रकाशित रचना है

#प्रतियोगिता हेतू


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4 Comments

Raziya bano

08-Jun-2022 05:54 PM

Nice

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Lekhika Ranchi

03-Feb-2022 04:01 PM

बहुत खूबसूरत

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Swati chourasia

09-Dec-2021 05:20 PM

Very beautiful 👌👌

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